Uttar Poorva
उत्तर पूर्व
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Description
उत्तर पूर्व
उपन्यास
“इराबो ने इतिहासकार की भूमिका के बारे सोचा। अतीत के कई ‘वर्जन’ हो सकते हैं। इतिहासकार को चुनना होता है। उसका मुख्य काम ही है चुनना, तथ्य चुनना, फिर संदर्भ, फिर अर्थवत्ता चुनकर एक वर्जन चुनना-अनगिनत तथ्यों और अनेक व्याख्याओं में से चुनना है… वह पूरे अतीत को भी तो प्रस्तुत नहीं कर सकता- आद्योपान्तता उसके वश में नहीं, कहीं से शुरू करना होगा और कहीं न कहीं खत्म करना होगा।’ ये हैं उपन्यास उत्तर पूर्व की कुछ पंक्तियां । इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा ने इस उपन्यास का जो विषय चुना है उसके पीछे यही इतिहास दृष्टि काम कर रही हैं।
उपन्यास का नाम प्रतीकात्मक है और इसके दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। एक तो है नार्थ ईस्ट के संदर्भ में—इस उपन्यास की पृष्ठभूमि मणिपुर हैं। दूसरा है— जवाब मिलने से पहले सवालों के उमड़ने-घुमड़ने और टकराने का मंथन। इसमें जवाब न मिलने की पीड़ा भी हैं और उसे ढूंढने का रचनात्मक रोमांच भी।
‘फेडरलिज्म ऑन ट्रॉयल’ यह पेपर उपन्यास का एक मुख्य पात्र वर्मन तैयार कर रहा है। वह भारत की तथाकथित मुख्य भूमि का बाशिन्दा है और मणिपुर रहने आया है, विश्वविद्यालय में शिक्षक बनकर। यह संक्रमण उसे मौका देता है कि वह भारतीय राष्ट्र के मिथक और संघीय ‘उदारता’ की चीरफाड़ करे। इस रास्ते उसका सामना इराबो के खंडित स्वप्न से होता है जो ‘मणिपुर को भारत में और भारत को विश्व में अवस्थित करके समाज की एक मैक्रो छवि बनाना चाहता है और फिर ढूंढेगा मणिपुर में उसका माइक्रो मॉडल।’ इस सपने में मणिपुर का इतिहास-संस्कृति-समाज-राजनीति सब कुछ हैं। इन टूटे हुए स्वप्न -किरचों में मानवीय संबंधों की बहुरूप बहुरंगी छवि दिखती है। जिसके धागों के छोर पकड़े बर्मन, मुग्धा, तनु-तूली और इस उपन्यास के तमाम पात्र खड़े हैं।
उपन्यास में भारतीय समाज और राजनीति, शिक्षा और संस्कृति पर एक विहंगम दृष्टि है जो कि विभिन्न पात्रों के माध्यम से देह धरती है। भारतीय मनुष्य अपने सारे छोटेपन और उदात्तता के साथ इसमें मौजूद हैं—और तमाम तनावों के बीच खिंचते और अपने साथ प्रयोग करते, अपने को खींचते लोग और उनके आपसी रिश्ते, यह है इस उपन्यास का केन्द्रबिंदु।
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