Description
भारतीय सभ्यता की निर्मिति
जिज्ञासा
पहले लोगों के पास खाना पकाने को बर्तन नहीं थे और वे कोई चीज पानी में उबाल नहीं सकते थे। जब वे बरसात के दिनों में इधर-उधर जाते तो उनके पांवों में कीचड़ जम जाती और उससे उनका पोर-पोर भर जाता और जब वे वापस आ कर आग तापते तो पाते कि कीचड़ की परत कड़ी हो गई है। एक बार उनमें से एक आदमी ने सोचा कि यदि मिट्टी आग से कड़ी हो जाती है तो इससे कुछ बनाया क्यों न जाए। उसने एक बर्तन बनाया और इसे धूप में सुखा कर, उसमें पानी भर कर, उसमें मांस डाल कर तीन पत्थरों के एक चूल्हे पर रख दिया। लेकिन जब उसने आग जलाई तो वर्तन टूट गया और पानी बह गया। इससे आग बुझ गई। अब उसे मालूम हुआ कि धूप की गर्मी ही काफी नहीं है। उसने सोचा, यदि हमे आग पर खाना पकाना है तो पहले हमे बर्तन को आग में पकाना होगा। इसलिए उसने बर्तन को आग पर पकाया और इस बार वह नहीं टूटा। इसके बाद से लोग आग से बर्तन पकाने और बर्तन में खाना बनाने लगे। मध्यभारत के कवर्धा जनों में प्रचलित कथा
-इसी पुस्तक से
भारतीय समाज व्यवस्था दुनिया की सबसे जटिल समाज व्यवस्थाओं में से एक है। इसमें आदिम जनों से ले कर सवर्ण समाज तक, बिरादरी पंचायतों का लगभग मिलता-जुलता रूप देखने में आता है। बुद्ध गणसंघों की इस विशेषता के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने संघ का ढांचा भी इन्हीं के नमूने पर तैयार किया था। कोशल नरेश प्रसेनदि आश्चर्य करते थे कि जब उन्हें अपने दरबार में भी अनुशासन बनाए रखने में इतनी कठिनाई आती है, तो फिर बुद्ध अपने इतने बड़े संघ को कैसे अनुशासित रख लेते हैं।
-इसी पुस्तक से
शून्य की अवधारणा से भारतीय दार्शनिकों ने सृष्टि का एक विस्मयजनक समाधान प्रस्तुत किया। यह है असत् (nothingness) और सत् (being) दोनों से परे एक स्थिति जो अस्तित्व का अभाव नहीं है; ऐसा भाव भी नहीं कि कह सकें कि कुछ है, फिर भी इन दोनों में से कुछ भी न होने के कारण स्वतः कुछ है। यह अवधारणा बिंदु की तरह है जिसमें न तो लंबाई होती है, न ही चौड़ाई फिर भी वह होता है। न सद् आसीत् न असत् आसीत् तदानीम्। इसमें असत् और सत् से परे है, संभावना (possibility), यच्च भाव्यं । इसकी स्थिति शून्य जैसी है – हो कर भी कुछ न होना। यह जब तक अकेला है, हो कर भी न होने जैसा, निष्क्रिय पड़ा सा है। कुछ कर ही नहीं सकता। कुछ जन ही नहीं सकता। परंतु किसी के सम्पर्क में आने पर, एक से बहु और बहुधा होने लगता है। इससे सत या सत्ता के बहुत सारे संयोजनों-वियोजनों का चक्र आरंभ हो जाता है।
-इसी पुस्तक से
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