Description
दलित आत्मकथाएं
अनुभव से चिंतन
* एक बार अस्पृश्य तो हमेशा के लिए अस्पृश्य। एक बार ब्राह्मण तो हमेशा के लिए ब्राह्मण। एक बार भंगी तो हमेशा के लिए भंगी। जो लोग उच्च जाति में पैदा होते हैं, वह इस व्यवस्था में हमेशा उच्च रहते हैं, और जो निम्न जाति में पैदा होते हैं, वे हमेशा निम्न रहते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था कर्म, अर्थात भाग्य के अटल सिद्धांत पर आधारित है, जो एक बार हमेशा के लिए निश्चित होता है और कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। इस व्यवस्था में किसी की व्यक्तिगत योग्यता या अयोग्यता को कोई स्थान नहीं है। कोई अस्पृश्य ज्ञान और आचार-विचार में कितना ही श्रेष्ठ क्यों न हो, लेकिन ज्ञान और आचार-विचार में वह स्पृश्य से नीचे ही समझा जाएगा, जो ज्ञान या आचार-विचार में कितना ही हीन क्यों न हो। कोई स्पृश्य चाहे कितना ही गरीब क्यों न हो, वह उस अस्पृश्य से ऊंचा है, जो चाहे कितना ही अमीर क्यों न हो।
यही है भारतीय गांवों के भीतरी जीवन की तस्वीर। इस गणतंत्र में लोकतंत्र के लिए कोई स्थान नहीं। इसमें समता के लिए स्थान नहीं। इसमें स्वतंत्रता के लिए कोई स्थान नहीं। इसमें भ्रातृत्व के लिए कोई स्थान नहीं। भारतीय गांव गणतंत्र का ठीक उलटा रूप है। अगर कोई गणतंत्र है तो यह स्पृश्यों का गणतंत्र है, स्पृश्यों के द्वारा है और उन्हीं के लिए है। यह गणतंत्र अस्पृश्यों पर स्थापित हिन्दुओं का एक विशाल साम्राज्य है। यह हिन्दुओं का एक प्रकार का उपनिवेशवाद है, जो अस्पृश्यों का शोषण करने के लिए है। उन्हें तो सिर्फ मुंह जोहना है, सेवा करनी है और अपने को अर्पित कर देना है। उन्हें सिर्फ यह कार्य करते रहना या मर जाना है। उनके कोई अधिकार नहीं हैं, क्योंकि वे इस तथाकथित गणतंत्र से बाहर हैं। वे हिन्दुओं के समाज से बहिष्कृत हैं। यह एक दुश्चक्र है। लेकिन यह यथार्थ है, जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता।’
– डॉ. भीमराव आम्बेडकर
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