Itihas ke baare me
इतिहास के बारे में
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Description
इतिहास के बारे में
जिज्ञासा
इतिहास के बारे में : इतिहास क्या जो इतिहास निर्माण के लिए ऊर्जा और दृष्टि न दे। पर इतिहास परमाणु ऊर्जा जैसा होता है—उतना ही विध्वंसक, उतना ही सर्जनात्मक । आदमी ने अपने अनुभव से छाछ भी फूंक-फूंक कर पीने जैसा विवेक गढ़ लिया। समस्त समाज के अनुभव-संसार के सार संकलन से उपजा विवेक ही इतिहास है। उसकी वैज्ञानिक समझ हमें आशावादी, प्रगतिवादी, सचेत, सोद्देश्य और सृजनशील बना सकती है।
व्यक्ति या समाज स्वयं को या तो अंतरमंथन के माध्यम से समझते हैं या सिहावलोकन के माध्यम से। सिंहावलोकन इतिहास की परीक्षित पद्धति है और अंतरमंथन भी वैज्ञानिक तभी होता है जब ऐतिहासिक पद्धति से किया जाय। व्यक्ति को भी समाज के इतिहास के परिप्रेक्ष्य में ही समझा जा सकता है। अगर किसी को सचेत रूप से सामाजिक परिवर्तन में रचनात्मक हस्तक्षेप करना है— किसी वांछित दिशा में समाज को ले जाना है तो विभिन्न पहलुओं, शक्तियों, अंतर्विरोधों, मूल्यों, संस्थाओं और उन्हें गति देने वाले कारकों को समझना होता है। तभी सार्थक, सोद्देश्य और दिशोन्मुख प्रयास हो सकता है। प्रकृति को भी आदमी ने पहले समझा है तभी एक हद तक उसका वांछित प्रयोग कर सकता है, जरूरत के मुताबिक उसे बदलते हुए। इसी अर्थ में इतिहास समाज को समझने और बदलने का उपकरण है।
कुछ लोगों को ये बातें हवाई लग सकती हैं पर जो समाज का सचेत साक्षात्कार कर रहे हैं, जिन्हें सरोकार है और जो समाज की वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं उन्हें ‘है’ और ‘होना चाहिए’ के बीच के अंतर और एक से दूसरे तक की यात्रा के महत्व और उसमें निहित कठिनाइयों का अहसास होगा। इसलिए वे इतिहास संबंधी समस्याओं को समझना चाहेंगे, ताकि उनका हल ढूंढा जा सके, क्योंकि इतिहास की समस्याओं को समझने और उन्हें हल करने का सवाल स्वयं समाज को समझने और बदलने के सवाल से जुड़ा हुआ है।
चौथा संस्करण : पुस्तक के तीसरे संस्करण में दो नई रूपरेखाएं जोड़ी गई थीं- ‘इतिहास में न होने का दर्द: दलित नजरिया’ और ‘शोध की अर्थवत्ता’। चौथे संस्करण में एक और अध्याय ‘राहुल सांकृत्यायन : इतिहासकार-जन के लिए’ जोड़ा गया है।
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