मतलब? मतलब ये कि यहाँ बर्बरता का शासन है। यहाँ कमजोर होकर चलने में सबकी ताकत का बोझा ढोना पड़ता है, ताकतवर होने के लिए कमजोरियों से समझौता करना पड़ता है। कहीं कुछ चुभता सा रहता है। कभी-कभी लगता है चारों तरफ फंस गई हूँ। जहाँ उजाला था उसे छोड़कर जहाँ आ गई हूँ वहाँ अंधेरा है, चारों और पेड़ों के घने झुरमुट हैं जो राह रोकते हैं और जहाँ सोचने-भर की जगह भी नहीं वहां भी काले जंगल हैं। सोचने की जो अकेली जगह मैं पहले घेर चुकी थी वे जंगल उस पर भी हमलावार हो रहे हैं। कुछ बंजर झाड़ियाँ सी उग आई हैं। इनमें कंटीली घास पनप रही है, सोचते-सोचते कई बार उद्विग्न हो जाती हूँ। फिर और सोचने लगती हूँ। सोचने की जगह नहीं पर सोचने से मुक्ति भी नहीं। जैसे कभी-कभी अपने ही मांस में अपने नाखून गड़ाते रहने पर खाल की तीखी जलन में भी कुछ मिलता सा है। जैसे कोई अपनी ही हथेली पर बेंत लगाता है और कुछ हासिल करता है। खेलने का मैदान, उससे जुड़ी यादें और ये सारे हादसे भी मेरे लिए ऐसे ही हैं। लेकिन फिर भी कुछ ऐसा है जो मुझे मजबूर करता है इस सबसे जुड़े रहने को।
-इसी उपन्यास से
हम सब बात कर ही रहे थे कि अचानक आधी रात के आस-पास जोर से आवाजें सुनाई दीं। देर तक कुछ मसला चलता रहा। रात होने की वजह से पता नहीं चल पाया कि माजरा क्या है। लेकिन कुछ तो ऐसा था जो नहीं होना चाहिए था। पंजाब, मणिपुर व केरल के बीच का कुछ झगड़ा था। मणिपुर होस्ट था नेशनल गेम्स का। केरल के खिलाड़ियों ने पंजाब की एक खिलाड़ी को छेड़ दिया और उस घटना को रेप का नाम दे दिया गया। बदला लेने के नाम पर पंजाब के कुछ खिलाड़ियों ने केरल पर पलट वार कुछ उसी ढंग से किया। दोनों घटनाएं गेम्स कैम्पस में चर्चा का विषय बनी रहीं। हमारी टीम को भी हिदायत मिली कि डिनर के बाद कोई बाहर न निकले। आखिरी दिनों में मेल मिलाप पर भी पहरे लग गए। मजा तब आता था जब टीम इंचार्ज कैप्टन को सबके लिए उत्तरदायी बनाकर जाते और कैप्टन खुद ही सबसे पहले गायब हो जाती। इसमें गलत भी क्या था। नए दोस्तों से मिलने का, बातें करने का यही थोड़ा सा समय होता था।
-इसी उपन्यास से
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